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अगर जिंदगी को अच्छे से जीना चाहते हो तो जीवन बदल देने वाली इस कहानी को जरूर पढ़ना , Moral Story in Hindi

जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल पाओगे। क्या कर्मा सच में रीयल लाइफ में काम करता भी है या यह सब केवल बकवास की बातें है? क्या यह सब बातें केवल कहानियों में ही अच्छी लगती या कुछ रीयल लाइफ में भी होती है। आज मैं आप लोगों के साथ  2 ऐसी रीयल लाइफ स्टोरी शेयर करने जा रहा हूं जो इसी बात को साबित करती है की क्या सच में कर्मा रीयल लाइफ में काम करता है या नही?

Story 1:- कर्मा क्या है और कर्मा कैसे काम करता है?

मान लो आपकी आखों ने किसी पेड़ पर पर पके आम देखे। अब आपको उस आम के फल को खाने की लालच लगी। अब जाहीर सी बात है की आख आम को तोड़ नहीं सकते जिसकी वजह से आपके पैर गए आम के पेड़ के पास, अब फिर जाहीर से बात है की आपके पैर आम को तोड़ नहीं सकते जिसकी वजह से आपके हाथ ने पेड़ से आम के फल को तोड़ा। जिसे बाद मे आपके मुह ने खाया और वह आम पेट मे गया।

अब यहा पर ध्यान से गौर करो की जिसने आम के फल को देखा वो पेड़ के पास गया नहीं, जो आम के पेड़ के पास गया उसने आम को तोड़ नहीं, जिसने आम को तोड़ा उसने आम को खाया नहीं, जिसने आम को खाया उसने उसे रखा नहीं क्योंकि उसे खाने के बाद वह तो पेट मे।

फिर जब माली ने आपको आम खाते हुए देखा तो माली ने आपके पीठ पर डंडे मारे जिसकी कोई भी गलती थी ही नहीं, पर जब माली ने पीठ पर डंडे मारे तो आखों मे दर्द की वजह से आसू आए क्योंकि आखों ने ही तो सबसे पहले आम के फल को देखा था।

अगर आखों ने फल को देखा न होता तो उसे खाने के लालच नहीं लगती, जब खाने की लालच नहीं लगती तो तोड़ने के लिए नहीं जाते जब तोड़ने के लिए नहीं जाते तो उस तोड़ पाते नहीं, जब उसे तोड़ पाते नहीं तो फिर खाते कैसे और फिर तब माली पीठ पर डंडे नहीं मारता और न ही फिर आखों मे आसुँ आटे।

यह सब कर्मा का खेल है। जैसा आप कर्म करोगे वैसा ही आपको फल मिलेगा। जिंदगी मे कभी भी ये सोचने की गलती मत करना की आपके कर्मों का फल आपको नहीं मिलेगा। नहीं ऐसा कभी नहीं होता है।

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Story-2:- जब तक शरीर मे जान है तब तक लोगों का साथ है !

एक व्यक्ति था जिसके तीन दोस्त थे। पहला दोस्त जो हमेशा उसके साथ रहता था। पूरा दिन, पूरा सप्ताह, पूरा साल हमेशा उसी के साथ रहता था। दूसरा दोस्त जो उससे दिन मे केवल एक, दो बार या फिर कह सकते है सुबह सायं मिलता था। और जो उसका तीसरा दोस्त था वह उससे कभी कभी मिलता था। मतलब हफ्ते मे एक बार , कभी-कभी महीने मे एक ही बार उससे मिलता था।

एक बार उस व्यक्ति के साथ कुछ ऐसा दुर्घटना हो गया जिसकी वजह से उसे किसी काम से एक गवाह को लेकर कोर्ट मे जाना था। अब वह व्यक्ति अपने सबसे पहले दोस्त के पास जाकर कहा :- दोस्त क्या तुम गवाह बनकर मेरे साथ कोर्ट मे चल सकते हो? अब दोस्त बोला :- Sorry यार आज तो मैँ बहूत जादा बीजी हूँ इसलिए आज तो मैँ तुम्हारे साथ नहीं चल सकता। वह व्यक्ति सोचने लगा की मेरा यह दोस्त हमेशा मेरे साथ रहता था, हमेशा मेरा साथ देता था। आज मैँ मुसीबत मे हूँ तो आज यह मुझे अकेला छोड़ दिया। जब जो हमेशा मेरे साथ रहता था उसी ने मेरा साथ नहीं दिया तो दूसरा दोस्त क्या साथ देगा?

फिर वह व्यक्ति हिम्मत करके दूसरे दोस्त के पास जाकर के अपनी परेशानी बताया जो दिन मे एक दो बार उससे मिलता था। अब दूसरे दोस्त ने कहा : मैँ तुम्हारे साथ तो चलूँगा पर मैँ केवल कोर्ट के दरवाजे तक ही जाऊंगा , उसके अंदर नहीं जाऊंगा। वह व्यक्ति बोला – बाहर के लिए तो मैँ ही बहूत हूँ, मुझे अंदर के लिए गवाह चाहिए।

फिर वह हारमानकर बहूत कम उम्मीद के साथ अपने तीसरे दोस्त के पास जाकर जो महीने  कभी कभी उससे मिलता था  अपनी समस्या बताया और वह दोस्त बी झिझक, बिना किसी शर्त के उसके साथ कोर्ट मे गवाह बनकर जाने को तैयार हो गया। अब आप सोच रहे होंगे की वह आदमी कौन है और उसके वह तीन दोस्त कौन है?

अब देखिए जैसे अभी एक व्यक्ति और उसके तीन दोस्तों की कहानी सुनी वैसे ही इस संसार मे हर एक व्यक्ति के तीन मित्र होतें है।

पहला दोस्त  है हमारा शरीर, जो हमेशा हमारे साथ रहता है, जो कभी भी हमसे अलग नहीं होता है। एक पल के लिए हमसे अलग नहीं होता है। दूसरा दोस्त- हमारे शरीर के संबंधी जैसे परिवार रिस्तेदार आदि जो दिन मे कभी कभी महंसे मिलते हैं। और तीसरा दोस्त – हमारा कर्म जो सदैव ही हमारे साथ जाते हैं।

अब जरा सोचो जब आत्मा शरीर को छोड़कर धर्मराज के Court मे जाती है तो उस समय जो इंसान का पहला दोस्त होता है यानि की शरीर जो एकदम ही आगे चलकर भी साथ नहीं देता है जैसा की उस व्यक्ति के साथ उसका पहला दोस्त किया था। अब दूसरा दोस्त यानि की संबंधी, जो शमशान घाट तक यानि की अदालत के दरवाजे तक तो  राम नाम सत्य कहते हुए जाते है पर फिर वही से वापस आ जाते हैं। और तीसरा दोस्त यानि की हर एक इंसान का कर्म जो हमेशा ही उसके साथ जाते हैं। फिर चाहे वह अच्छे हो या फिर बुरे।

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